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Showing posts from February, 2017

मुश्किल जबाब।

                       समाज में एक महिला की भूमिका “अधिकारों की भूख इस कदर बढ़ी कि कर्तव्य बेदाम हो गये , बस नारी को छोड़कर , सब नीलाम हो गये”  एक ऐसे प्रश्न का जबाब ढूँढ पाना बेहद मु्श्क़िल होता है , जिसका स्वयं का वज़ूद संशय एवं विरोधाभाष से अनवरत घिरा रहा हो , लेकिन सहजता सरलता का नहीं बल्कि मुश्किल हालातों का उत्तरवर्ती परिणाम है , और यही उन प्रयासों का प्रेरणास्रोत है जिसने एक मां , एक बहन , एक प्रेमिका , एक बेटी जैसे तमाम संबोधन धारण करने वाले इस अनन्त विश्व के सर्वश्रेष्ठ चरित्र के सामाजिक कर्तव्यों की असीमित एवं प्रभावशाली श्रंखला को संगठित एवं संवर्धित करने का प्रेरक अवसर दिया। एक स्त्री समाज में स्वयं को कई अलग अलग रूपों में प्रस्तुत करती है , वह किसी के लिये माँ होती है जो अपनी संतान की परवरिश करने में इस कदर खो जाती है कि अपनी ज़िन्दगी का हर कीमती व़क्त उसे सभ्यता एवं संस्कार सिखाने में ही हंस हंस कर गुजार देती है। वह किसी के लिये बेटी होती है , जिससे अच्छा मां-बाप के प्रति प्रेम न तो कोई दिखा सकता है और न ...