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Showing posts from April, 2025

Complacent & Conciliant

कुर्सीयाँ न मिलें तो न ही सही, कुर्सियों से कौन सा हर काम बन जाएगा l मेरे काम को अपना बताकर, कौनसा वो मेरा हुनर ले जाएगा l बगीचे की छाँव में बैठा है तो बैठने दो, कौनसा वो मेरा शजर ले जाएगा   (शजर - पेड़ ) - नितिन प्रताप सिंह 

Liquidation of desires

चंद गज़ की शहरियत किस काम की  ओढ़ना आता हो फिर छत किस काम की  Sometimes "go with the flow" phrase not works. Liquidate your desires