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Showing posts from October, 2015

हौसला अपनों का.........

       गुजारिश तुम्हारे साथ  गुजरे  पल मुझे हर पल सताते हैं  तुम्हारी याद के  नग्मे मेरे जज्बात गाते  हैं मैं तुमसे दूर आया हूँ तुम्हारे पास आने को  वहाँ तुम ठीक से रहना यहां हम मुस्कराते हैं हमें मालूम है हम बिन तुम्हारा हाल कैसा है  वहा तुम रो लिया करती यहां हम भीग जाते हैं  अगर है सीखना तो सीख लो उन चंद लोगों से  जो अकसर दूर रहकर भी सभी रिश्ते निभाते हैं  बिना गतिरोध के ही प्यार मिलना खुशनसीबी है  कई तो जिंदगी भर प्यार करके कुछ न पाते हैं  हमारी याद आने पर कभी मायूस मत होना  तुम्हारे दुःख के चलते हम भी अकसर टूट जाते हैं  मुझे मोहलत अभी कुछ और दे दो ऐ मेरे हमदम  हर एक धड़कन में तुम ही हो तुम्हें फिर हम बताते हैं  अभी चलना है मुझको दूर तक तुम रोक मत लेना सुना है हौसला अपनों का अपने ही बढ़ाते हैं ......                                         ...

राष्ट्रीय प्रौध्योगिकी संस्थान, सिल्चर-तुम्हें एक होकर आगे जाना होगा.....

          अन्तरंग ग़मों को दूर यारों से, मसान में छोड़ आया हूँ  नदी से प्यार के चलते समंदर छोड़ आया हूँ  मुझे तो देश और दिल में दिलों पर राज है भाया  सिकंदर को भी इस मसले  में पीछे छोड़ आया हूँ  कोई तकलीफ तुमको हो समय रहते बता देना  मैं हर तकलीफ को अवरोध बनकर रोक आया  हूँ तेरे घर को मिटाने की जो वो साजिश रचाती थीं उन्हीं शातिर हवाओं के मैं रुख को मोड़ आया हूँ  मिला जो प्यार तुम सब से ये मेरी खुशनसीबी है  इसी यारी के चलते मैं बरेली छोड़ आया हूँ  मुझे अब याद आया है,हुआ मिलना मेरा जिससे  वही कल कह रहा था मैं बनारस छोड़ आया हूँ  सुना घर छोड़ने की बात अब चर्चे में आयी है तो वो बोला सुनों यारों मैं पटना छोड़ आया हूँ तभी  बोला कोई माना,मैं अपने राज्य में ही हूँ  मगर फिर भी मैं घर अपना गुहाटी छोड़ आया हूँ  ग़मों को दूर यारो से मसान में छोड़ आया हूँ नदी से प्यार के चलते, समंदर छोड़ आया हूँ. . . .              ...

हकीक़त ज़िन्दगी की

कभी जीना कभी मरना कभी आंसू बहाना है कभी रुकना कभी चलना सफर फिर कट ही जाना है अगर दिल में तमन्ना हो हमेशा जीत जाने की उसे एक दिन सिकंदर की तरह फिर जीत जाना है किसी का दर्द काम करके उसे जीना सिखाना  है मेरा जो भी  बचा जीवन  किसी के काम  लाना है कई  जीते हैं दिल के देश पर मालूम है मुझको सिकंदर हूँ मुझे एक रोज़  खाली हाथ जाना है बिना मेहनत के तख्तो ताज  हासिल नहीं होते  बहुत नजदीक इस दरिया के अब नहीं  साहिल  होते बहुत कुछ जानने के बाद ये मालुम हुआ मुझको क्यों आखिर चाय वाले सब कभी मोदी नहीं बनते मुझे अब हार में भी जीत का एहसास रहता है मुझे मिल जायेगी मंजिल मेरा विश्वाश कहता है  मुझे आदत नहीं है अब कोई ठहराव लाने की मैं उस दरिया का पानी हूँ जो बस बहता ही रहता है सुबह निकला हुआ सूरज शाम तक ढल ही जाता है जो रखता है जलन दिल में वो अक्सर जल ही जाता है जिन्हें मेहनत से ज्यादा अब तलक कुछ और न भाया   उन्हें उनका जुनूँ  फिर मंजिलों तक ले ही जाता है हमारी जिंदगी में इश्क भी होना जरूर...

सियासत..एक होने ही नहीं देगी

मेरे चुपचाप रहने से, हकीकत चुप नहीं रहती। कलम मिट जाएगी फिर भी,स्याही मिट नहीं सकती। सियासत छोड़ कर गर देशहित में काम करते तो, कभी हिंदू-कभी मुस्लिम की माँ रोया नहीं करती। सियासत दादरी में आज कल,डेरा जमाए है। सुना है पास के मंदिर में ये पहरा बिठाए है। जहाँ टकराव धर्मों में हुआ,अखबार कहते हैं, वहाँ के वोट लेने हिंदू-मुस्लिम साथ आए हैं......                                       ....आत्ममंथन.... सुना था कल मैंने वहाँ दंगे फसाद हुए हैं जब हकीकत मिली,तो रो रो कर वोली नितिन, वहाँ कई घर बर्बाद हुए हैं......                           haqiqatjindgiki.blogs.com (नितिन प्रताप सिंह)

माँ

जब आंख खुली तो अम्‍मा की गोदी का एक सहारा था उसका नन्‍हा सा आंचल मुझको भूमण्‍डल से प्‍यारा था उसके चेहरे की झलक देख चेहरा फूलों सा खिलता था उसके स्‍तन की एक बूंद से मुझको जीवन मिलता था हाथों से बालों को नोंचा पैरों से खूब प्रहार किया फिर भी उस मां ने पुचकारा हमको जी भर के प्‍यार किया मैं उसका राजा बेटा था वो आंख का तारा कहती थी मैं बनूं बुढापे में उसका बस एक सहारा कहती थी उंगली को पकड. चलाया था पढने विद्यालय भेजा था मेरी नादानी को भी निज अन्‍तर में सदा सहेजा था मेरे सारे प्रश्‍नों का वो फौरन जवाब बन जाती थी मेरी राहों के कांटे चुन वो खुद गुलाब बन जाती थी मैं बडा हुआ तो कॉलेज से इक रोग प्‍यार का ले आया जिस दिल में मां की मूरत थी वो रामकली को दे आया शादी की पति से बाप बना अपने रिश्‍तों में झूल गया अब करवाचौथ मनाता हूं मां की ममता को भूल गया हम भूल गये उसकी ममता मेरे जीवन की थाती थी हम भूल गये अपना जीवन वो अमृत वाली छाती थी हम भूल गये वो खुद भूखी रह करके हमें खिलाती थी हमको सूखा बिस्‍तर देकर खुद गीले में सो जाती थी हम भूल गये उसने ही होठ...

कुछ अनुभव....

                    अनुभव   अगर तैराक अच्छा हो किनारा मिल ही जाता है   भटकती नाव को अक्सर सहारा मिल ही जाता है   अगर सिद्दत से चाहो अजनबी अनजान राही को   तो राही राह में अक्सर दोबारा मिल ही जाता है  कई संग्राम जीते अंत में कुछ काम न आया   हमारी रह में अकसर कभी अभिराम न आया   मगर जब मौत आई इक सिफारिश न चली मेरी   सिकंदए नाम भी मेरा मेरे कुछ काम न आया  अगर जब साथ अपने हों सफर छोटा सा लगता  है  अगर कीमत न हो सिक्के की तो वो खोंटा सा लगता है अगर अपना ही अपनों में बगावत का जहर भर दे   तो अपना शब्द भी अक्सर महज धोखा सा  लगता है  ……                                       ( नितिन प्रताप सिंह )  haqiqatjindgiki.blogs.com

एक पवित्र रिश्ता

                  रक्षाबंधन  कद्र करना बहन की,आज दिन राखी का आया है। ये है विश्वास का रिश्ता,मेरी माँ ने बताया है। कलाई पर बँधा धागा बड़ी पहचान रखता है, बहन की लाज तुम रखना,ये धागे ने बताया है। मैं घर होता अगर तो,आज तेरे घर चला आता, तू है नाराज कुछ मुझसे,हवाओं ने बताया है। तेरी राखी मुझे कल ही मिली,और पूछने बैैठी, तू खुद आया नहीं और खुद मुझे सिलचर बुलाया है। बहन सिलचर से तेरा घर,बहुत लंबे सफर का है, इसी किस्से को खुद भूगोल ने मुझको सुनाया है। तू रहना ठीक से घर पर,मैं कुछ दिन बाद आऊँगा, तेरी रछा का वादा जो किया,वो मैं निभाऊँगा। तेरी राखी ने तेरे साथ का एहसास दिलाया है, उसी एहसास का वरणन,कलम ने कर दिखाया है कद्र करना बहन की, आज दिन राखी का आया है। ये है विश्वास का रिश्ता,मेरी माँ ने बताया है....... .......(नितिन प्रताप सिंह) .... haqiqatjindgiki.blogs.com

शिक्षक एक प्रमुख मानव संसाधन

शिक्षक आज का दिन है तुम्हें समर्पित तुमने हमें पढ़ाया है। चाहें ज्ञान हो,चाहें गुण हो, तुमसे ही सब पाया है। चमकी दुनिया तेज से जिनके , उनकी ही ये गाथा है, तुमको देख के चाँद भी खुद में, देखो आज लजाया है। कल तक सीखा जो कुछ तुमसे, उससे नाम कमाया है। वजह सफल होने की तुम हो, लोगों ने बतलाया है। शत्-शत् नमन तुम्हें करते हैं, देश के मानव संसाधन, ऊपर वाले ने चुन-चुन कर, ज्ञानी तुम्हें बनाया है। जो मुमकिन था तुमने सौंपा, हमको ॠणी बनाया है। ज्ञान की गंगा को दुनिया में, तुमने शतत् बहाया है। सपने यहीं हकीकत बनते, उनमें अगर सच बसता हो, राधाकृष्णन का भी सपना, पूरा होने आया है। सच कहता हूँ तुम ही हो वो, जिसमें विश्व समाया है। (नितिन प्रताप सिंह).........एक पहल.... haqiqatjindgiki.blogs.com

खो गया कोहिनूर..

भारत का भारतरत्न ,,,अभी वारिश  थमी ही थी कि ,तुम क्या गए सारा मौसम रो पड़ा।

हार-जीत का खेल....

हार-जीत का खेल....  जिंदगी  आज हम जो कह रहे हैं , कल  वही  सुनते थे हम, जीत के स्वर्णिम तराने ,प्यार से  बुनते थे हम, हार की परछाइयाँ भी  छू नहीं पाती थीं हमको, जीत  की धुन में हमेशा ,प्रेम से जीते थे हम, आज हम  कह  रहे हैं ,कल  वही सुनते थे हम । जीत के स्वर्णिम तराने ,प्यार से बुनते थे हम। आज खुद को जान पाये ,खुद को पहचान पाये, हर विजय मुमकिन है लेकिन ,मौत से कब जीत पाये, काल की परछांईयों से कौन है जो पार पाये , मौत को किसने है देखा ,हाथ जीवन से मिलाये, हार  के बारे में कल  तक कुछ नहीं सुनते थे हम आज आलम ये  हुआ कि हार में जीते हैं हम आज हम जो कह रहे हैं ,कल वही सुनते थे हम । जीत के स्वर्णिम तराने प्यार से बुनते थे हम। ........

हिम्मत

भंवर में छोड़ कर अक्सर....

मुझे सुनना होगा..

                                                        “सफलता की तैयारी” इस “ साधारण और खुद के अनुभवों से प्रेरित ” पुस्तक को लिखा जरुर मैंने है लेकिन सच बात तो ये है कि-इसकी वजह वो हर एक विध्यार्थी है जो प्रतिभा का धनी होते हुए भी महज संसाधनों एवम्‌ उचित मार्गदर्शन के अभाव में खुद को अंधकार भारी दुनियाँ में खो देता है , जहाँ आतंकवाद , चोरी , और दासता का शाशन फलने-फुलने लगता है , और तब जन्म होता है अलकायदा , अल्फा , आईएसाई जैसे आतंकवादी संगठनों का जो सीरिया जैसे देशों में मानवता को तबाह कर , दुनियाँ को ये दर्शाना चाहते हैं कि नियति और प्रकृति में उनसे बड़ा कोई नहीं है!मेरी तमन्ना थी कि अपनी कमियाँ , अपने अनुभव , व अपने अंतर्मन के विचारों को उस हर युवा तक पहुंचा दूँ जो मुझे पढ़ कर ये महेसूस करे कि सफलता किसी एक धर्म , समुदाय , जाति के हिस्से मे नही है और न ही ग़रीबी-अमीरी से प्रभावित है , सफलता तो बस उसी की दासी है जिसने इसे पाने के लिए एक लंबे...

जो क्रम है प्यार का....

जो क्रम है प्यार का तुमसे वो माँ के बाद में ही है। दुआओं का खजाना आज मेरे साथ में ही है। हवाओं ध्यान से सुन लो कोई व्यवधान मत बनना, सफर में हर कदम मेरे मेरी माँ साथ में ही है। वो खुद के खून की कीमत को,हमसे कम समझते थे। उन्हें था प्यार भारत से,वो खुद को हम समझते थे। मुझे अभिमान है कि,मैं भी ऐसे मुल्क में जन्मा, जहाँ वे कुछ नहीं समझे,मगर भारत समझते थे। कभी हम साथ पढ़ते थे,बहुत हैरान करता है यहाँ खेला था हमने साथ में मैदान कहता है रहेगी जिंदगी जब तक सदा मिलते रहेंगे हम, यही यारों की यारी का हर एक आयाम कहता है मैं अपने गीत से महफिल को एक पहचान दे दूँगा अधूरी दोसती को आज मैं अंजाम दे दूँगा तुम्हारे हर दुखद संग्राम से लड़ने मैं आऊँगा मुसीबत के समय तेरे लिए मैं जान दे दूँगा.... कुछ-से-कुछ और...

मेरा वजूद....

तुम्हारे साथ जब मैँ था मेरी औकात न समझी मोहोब्बत से लिखे मेरे कभी अल्फाज न समझी मेरे गीतों ने दुनियाँ में मुझे पहचान जब दे दी, तो कहती हो नितिन देखो तुम्हे हूँ आज मैं समझी.... सफर एक बार तुमने साथ मेरे तय किया होता  अगर अच्छा नहीं लगता तो मुझसे कह दिया होता  कई साँचे थे जिनको प्यार से मैंने बनाया था, उन्हें कुछ रूप मिल जाता जो तुमने पढ़ लिया होता  तुम्हारा साथ मिल जाता सफर फिर स्वर्ग हो जाता अकेलेपन की मायुसी का भी फिर अंत हो जाता  मुझे मालूम है तुमने अकेले जीत पायी है , अगर तुम साथ हो जाते तो फिर इतिहास बन जाता ........ अफसोस नहीं अभिमान कहो. .