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Showing posts from March, 2017

तलाश..

तलाश जारी रहे हमारी,कि जब तलक मंजिलें न आएँ। प्रवाह प्रणय का रहे निरंतर, कि जब तलक रंजिशें न जाएं। है जिंदगी ये बड़ी अमानत, महज इसे तुम ख़तम न करना, इसे बनाना, इसे सजाना कि जब तलक स...

बदलता परिवेश और इंसान..

                           गाँव जिसने जिंदगी भर, प्यार की भरमार दी। साधनों की थी कमी पर,परवरिश दमदार की। एक दिन रोजी कमाने गाँव से रुखसत हुए,                                       लौट न पाए कभी घर,कोशिशें कई बार कीं। हम आज सापेक्षता के वशीभूत इस कदर हो चुके  हैं कि अपने वजूद की पहचान ही खो बैठे हैं । आज हमारी संस्कृति,हमारी भाषा, हमारे खानपान में जो बदलाव की लहर चली है ,उसे रोक पाना नामुमकिन सा प्रतीत होता नजर आ रहा है । हमारा यह तथाकथित तुलनात्मक रवैया विकास के नाम पर विनाश की संस्तुति रचता जा रहा है । इतनी बेहतर शिक्षा  प्राप्त करने के बाद भी हमारी सोंच पाशचात्य परिवेश के आगे घुटने टेकते  साफ़ नजर आ रही है ।  हमारा नजरिया झूठे सम्मान के नाम पर गुमराह किया जा रहा है, हम जिस परिवेश के कभी  हुआ करते थे आज वही परिवेश हमें तुच्छ मह्सूस होता है, हमें अपनी क्षेत्रीय भाषा बोलने में अपमान महसूस होता है,...

Booming Plagiarism

Undoubtedly we are livng in a transforming world where different sectors or dimensions are growing up rapidly.But just think about this so called development where this transformation is blossoming on a huge payoff  of our various resources. Anyway we are having uncountable problems which are person specific.Despite of this there are various global concerns which are encircling the whole world.One of them is very critical because it is directly related to our literature's continuous existence and furthur development.  Rushing through life has been increasing explosively and people are just following the policy of cut and paste.There are enough evidences in this context. Presently life has become an epitome of plagiarism in the field of literature.Uniqueness and natural cognisance of thoughts has been declined after the so called growth in IT and transforming communication sector.Actually intellectual kind of things are just becoming superficial now. People are busy to gain...

क़ीमत

कभी रहता था महलों में,वो अब दर-दर भटकता है। जो कल आँखों का तारा था,वो अब पल-पल खटकता है। कभी एक दौर था जब नाम लेते वह न थकता था, वही अब नाम सुनकर वो न जाने क्यों भड़कता है। कभी देखा ...

सियासत और विभाजन

सियासत और विभाजन मेरे चुपचाप रहने से, हकीकत चुप नहीं रहती। कलम मिट जाएगी फिर भी,स्याही मिट नहीं सकती। सियासत छोड़ कर गर देशहित में काम करते तो, कभी हिंदू-कभी मुस्लिम की माँ रो...

अँधेरे ने उजाले को अंधा कर दिया?

                             1 अँधेरा बढ रहा है रोज ये सुनने मे आया है हर एक मजलूम इसके खौफ से दहशत मे आया है चिरागों की रिहाई अब हमें कैसे मुकम्मल हो? सुना है साजिशों ने उनके घर ...

परिंदा चल दिया...

परिंदा चल दिया... मनुज मंजिल की ख्वाहिश में, दोबारा चल दिया फिर से। खुदा जब सामने आया, तो सजदा कर लिया दिल से। हुआ मद्धम उजाला, शाम भी ढलने को आयी है- परिंदा घर के रस्ते पर, दोबारा ...

अधूरी आकांक्षाएं

अधूरी आकांक्षाएं तुम्हारी याद हाय अब,हमे जीने नहीं देती। हवाये तेज नजरों को कभी मिलने नहीं देती। मैं खुद को रोक भी लेता तुम्हारी शान की खातिर, मगर शब्दों को ये मेरी कलम रुक...

भारत प्रतिमानों का घर

प्रगति का पाठ भारत ने, प्रथम जग को पढ़ाया था। जगत में सभ्यता अस्तित्व में, भारत ही लाया था। तुम्हारी साक्षरता दर बढ़ी है, मानता हूँ मैं. मगर पश्चिम में शिक्षा की लहर, भारत ही ल...

Kashmir Separatism...

Nitin Pratap Singh फक्र है..तुम पर.. Everyone will do it from now. सहन करते अगर कश्मीर में, कश्मीर चिल्लाते। मुनासिब था कि तब भाई समझ, हम साथ हो जाते। किया अपमान उसका, जिसने तुमको पुत्र माना था, तो आखिर किस तरह हम भी, वह...

परिवर्तित अवधारणा!

परिवर्तित अवधारणा! हम फुटपातों से चलकर,कुछ दूर निकल आए हैं। जल्दी-जल्दी में माँ की,तस्वीर भूल आए हैं। दो चार दिनों में अपना कहकर हो गयी पराई, फिर भी एक याद भी उसकी,हम नहीं भूल ...

"परिवर्तित सोंच"

जो चलते थे सच के पथ पर, वही पथिक पथ भ्रष्ट हुए। जो कल थे कर्तव्यपरायण, अधिकारों में लिप्त हुए। रिश्ते भी पैसे के आगे, अब देखो कमजोर हुए। कोतवाल के दावे वाले, आज निकम्मे चोर हुए...

चिराग बुझ न जाएँ

हवा के ख़ौफ के चलते,"दियों" को मत मिटा देना। ग़रीबी में हुए बुझते,चिरागों को बचा लेना। अगर तकनीक और त्योहार में तकरार आ जाए, उचित प्रतिभार अपनाकर,विवादों को मिटा देना। अनैतिक...